Sunday, April 10, 2011
ये भी सच है...
मांग भर चली कि एक जब नई-नई किरन, झोलकें धुनक उठीं, ठुमक उठे चरन-चरन, शोर मच गया कि लो चली दुल्हन, चली दुल्हन, गांव सब उमड़ पड़ा, बहक उठे नयन-नयन, पर तभी ज़हर भरी गाज एक वह गिरी, पुंछ गया सिंदूर, तार-तार हुई चूनरी, और हम अजान से, दूर के मकान-से, पालकी लिए हुए कहार देखते रहें ! कारवा गुज़र गया, गुबार देखते रहे !
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