Thursday, August 18, 2011

इंकलाब...

ऐसे सत्य की तलाश में..
मुझे अंधेरे से लड़ना है,
बहुत दूर अकेले चलना है..
मैं जुगनुओं के पीछे नहीं,
मशाल बन अब ख़ुद जलना हैं...

हालात !

जब कभी रोना हुआ चुपचाप से,
हो गए आकर खड़े, बरसात में
भीड़ में, दफ्तर में, मुर्दे हर जगह
जी रहे हैं, मौत के हालात में....
अब यक़ीं आया उन्हें इस बात में
जल गया सारा शहर उस रात में.....

Sunday, April 10, 2011

ये भी सच है...

मांग भर चली कि एक जब नई-नई किरन, झोलकें धुनक उठीं, ठुमक उठे चरन-चरन, शोर मच गया कि लो चली दुल्हन, चली दुल्हन, गांव सब उमड़ पड़ा, बहक उठे नयन-नयन, पर तभी ज़हर भरी गाज एक वह गिरी, पुंछ गया सिंदूर, तार-तार हुई चूनरी, और हम अजान से, दूर के मकान-से, पालकी लिए हुए कहार देखते रहें ! कारवा गुज़र गया, गुबार देखते रहे !

Sunday, February 13, 2011

आत्मचिंतन

कि हारो ना तुम बढ़ते चलो
इस जिंदगी से लड़ते चलो
खो जाए गर तो फिर ढ़ूढ लो
गिर जाए गर तो फिर से गढ़ो
खट्टी सही मीठी सही
विष मान लो तो विष ही सही
पर मुफ्त में ये मिलती नहीं
ये इस कदर भी सस्ती नहीं
ये जिंदगी इक राज़ है
ये खुद खुदा की आवाज़ है
जीना यहां मरना यहां
इसके सिवा जाना कहां
इस जिंदगी ने क्या क्या दिया
फिर जिंदगी से कैसा गिला
चलते रहेगा ये सिलसिला
हर मौत के बाद है जिंदगी
होती रहेगी ये दिल्लगी
इसलिए
हारो ना तुम बढ़ते चलो
इस जिंदगी से लड़ते चलो...