देख मैं आ गया
तेरे आगोश में हलचल मचाने
आज तू न रोक मुझे
आज फिर मैं अलख जगाउंगा
आज फिर मैं रणभेदी बिगुल बजाउंगा
आसमान के इस पार से
उस पार तक मैं हुंकार मचाउंगा
मेरे गर्जन से कांप उठेगी आज धरती
पर्वतों का कलेजा आज होगा छलनी
नर और नारायण करेंगें मान-मनौव्वल
लेकिन मैं न रुकुंगा, क्योंकि....
मैं हूं क्रांति.......
Friday, March 5, 2010
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